• अच्छे व्यवहार का रहस्य

    अच्छे व्यवहार का रहस्य: a moral story in hindi

    • 2020-07-30 05:35:27
    • Puplic by : Admin
    • Written by : Unknown
    एक बार की बात है संत तुकाराम अपने आश्रम में बैठे हुए थे। तभी उनका एक शिष्य, जो स्वाभाव से थोड़ा क्रोधी था उनके समक्ष आया और बोला, ” गुरूजी, आप कैसे अपना व्यवहार इतना मधुर बनाये रहते हैं, ना आप किसी पे क्रोध करते हैं और ना ही किसी को कुछ भला-बुरा कहते हैं?”
    कृपया अपने इस अच्छे व्यवहार का रहस्य बताइए।
    संत बोले,” मुझे अपने रहस्य के बारे में तो नहीं पता, पर मैं तुम्हारा रहस्य जानता हूँ !”
    “मेरा रहस्य! वह क्या है गुरु जी?”, शिष्य ने आश्चर्य से पूछा।
    ” तुम अगले एक हफ्ते में मरने वाले हो!”, संत तुकाराम दुखी होते हुए बोले।
    कोई और कहता तो शिष्य ये बात मजाक में टाल सकता था, पर स्वयं संत तुकाराम के मुख से निकली बात को कोई कैसे काट सकता था?
    शिष्य उदास हो गया और गुरु का आशीर्वाद ले वहां से चला गया।
    उस समय से शिष्य का स्वाभाव बिलकुल बदल सा गया। वह हर किसी से प्रेम से मिलता और कभी किसी पे क्रोध न करता, अपना ज्यादातर समय ध्यान और पूजा में लगाता। वह उनके पास भी जाता जिससे उसने कभी गलत व्यवहार किया हो और उनसे माफ़ी मांगता।
    देखते-देखते संत की भविष्यवाणी को एक हफ्ते पूरे होने को आये। शिष्य ने सोचा चलो एक आखिरी बार गुरु के दर्शन कर आशीर्वाद ले लेते हैं।
    वह उनके समक्ष पहुंचा और बोला, ” गुरु जी, मेरा समय पूरा होने वाला है, कृपया मुझे आशीर्वाद दीजिये!”
    “मेरा आशीर्वाद हमेशा तुम्हारे साथ है पुत्र। अच्छा, ये बताओ कि पिछले सात दिन कैसे बीते? क्या तुम पहले की तरह ही लोगों से नाराज हुए, उन्हें अपशब्द कहे?”, संत तुकाराम ने प्रश्न किया।
    “नहीं-नहीं, बिलकुल नहीं। मेरे पास जीने के लिए सिर्फ सात दिन थे, मैं इसे बेकार की बातों में कैसे गँवा सकता था? मैं तो सबसे प्रेम से मिला, और जिन लोगों का कभी दिल दुखाया था उनसे क्षमा भी मांगी”, शिष्य तत्परता से बोला।
    संत तुकाराम मुस्कुराए और बोले, “बस यही तो मेरे अच्छे व्यवहार का रहस्य है। मैं जानता हूँ कि मैं कभी भी मर सकता हूँ, इसलिए मैं हर किसी से प्रेमपूर्ण व्यवहार करता हूँ, और यही मेरे अच्छे व्यवहार का रहस्य है
    शिष्य समझ गया कि संत तुकाराम ने उसे जीवन का यह पाठ पढ़ाने के लिए ही मृत्यु का भय दिखाया था, उसने मन ही मन इस पाठ को याद रखने का प्रण किया और गुरु के दिखाए मार्ग पर आगे बढ़ गया।

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