• इन्सान की कीमत की पहचान

    Inspirational story on इन्सान की कीमत की पहचान

    • 2020-08-18 03:29:46
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    • Written by : Unknown
    एक बार Raja के दरबार में एक मूर्तिकार अपनी मुर्तिया लेकर बेचने के लिए आता है, और Raja को अपनी मूर्ति खरीदने को कहते है. Raja देखता है कि मूर्तिकार 3 मूर्ति लेकर आया है जिसमे से 3 ही मूर्ति Raja को एक जैसे ही लगती है.
    Raja ने जब मूर्ति के कीमत पूछा तो मूर्तिकार ने कहा कि जो पहली मूर्ति है वो पाँच सौ रूपए की है, दूसरी पाँच हजार रूपए और तीसरी पाँच लाख रूपए की.
    तो Raja मूर्ति के और पास आता है और ध्यान से मूर्ति को देखता है लेकिन Raja को प्राप्त होता है कि तीनो ही मूर्ति एक सामान ही है, तीनो को एक ही मिट्टी से बनाया है, तीनो पर एक ही तरह का रंग लगाया है, तीनो मूर्तियों का आकर भी एक जैसा ही है और तीनो को बनाने वाला व्यक्ति भी एक ही है, तो फिर इन तीनो मूर्तियों की कीमत इतना अलग क्यों है, Raja को यह बात कुछ समझ नहीं आती है.
    तो Raja अपने दरबार से कुछ हुसियार और अकल्मंदो को बुलाता है और इन तीनो मूर्तियों की जांच करवाता है.
    परन्तु इन अकल्मंदो को भी यह बात समझ नहीं आती है कि आखिर में ऐसी क्या बात है कि तीनो मूर्ति की कीमत इतनी अलग है जब की तीनो मूर्ति की गुणवत्ता सामान ही है.
    Raja और वह खड़े सभी अकलमंदी सोच में पड़ जाते है, तभी Raja मूर्तिकार को बोलता है कि अगर तीनो मूर्ति एक ही है, तो तीनो की कीमत इतनी अलग-अलग क्यों है?
    मूर्तिकार जवाब देता है कि इन तीनो ही मूर्तियों की कीमत इतनी अलग इसलिए है क्योंकि तीनो ही मूर्ति में बहुत बड़ा फर्क है जो आप नहीं देख पा रहे है.
    Raja फिर सोच में पड़ जाता है कि मूर्तिकार इतने आत्मविश्वास से कैसे बोल सकता है, अभी मैंने देखा और अकल्मंदियों ने देखा पर हमें तो कोई फर्क नहीं दिखा तो ऐसा क्या फर्क है जो हम नहीं देख पा रहे है.
    फिर अंत में Raja अपनी Rani को बुलाता है, जो बहुत अकल्मन्द होती है, वह Rani जिसके आगे इस तरह के उलझन कुछ भी नहीं है.
    तो Rani जब तीनो मूर्तियों में फर्क देखने लगती है तो Rani की नज़र तीनो मूर्ति के कान की कलाकृति पर जाती है और पाती है कि इन तीनो मूर्ति के दोनों ही कानो में छिद्र है. जिसका मतलब है जो फर्क हम बहार से नहीं देख पा रहे है वो मूर्ति के अन्दर है, जरुर इन मुर्तिओं के अंदर ही कोई बात है.
    फिर Rani छिद्र के अन्दर की बात को पता करने कल लिए तार मंगवाती है, और एक-एक करके तीनो के कान के तार डालती है.
    पहले मूर्ति के कान में तार डालने से तार पहले कान से दुसरे कान से निकल जाता है. दुसरे में डालने से मुहँ से निकलता है और अंतिम मूर्ति के कान में तार डालने से वो तार न तो दुसरे कान से बहार निकलता है और न ही मुहँ से, वह तार मूर्ति के अन्दर पेट तक पूरा जाता है.
    इस वजह से जिस मूर्ति में तार दुसरे कान से बाहर निकल रहा है, वो पाँच सौ रूपए की है, जिसमे मुहँ से निकल रहा है वो पाँच हजार की और जिसके तार अन्दर ही रहता है वो पाँच लाख रूपए की मूर्ति होती है.
    क्या आपने इस कहानी का संदेश समझ लिया? अगर आपने इस कहानी का संदेश समझ लिया तो आपकी जिंदगी जीने का तरीका और कुछ नई बात या ज्ञान को अर्जित का तरीका बदल सकता है.
    दोस्तों इस कहानी से बहुत बड़ा संदेश मिल रहा है कि कहानी में बताये मूर्तियों की तरह हर इन्सान की कीमत ऐसे ही तय होती है.
    अगर कोई इन्सान ज्ञान को सुन कर एक कान से दुसरे कान से निकल देता है वह अपनी जिंदगी में कुछ भी नहीं कर पाता और उसकी कीमत पाँच सौ रूपए की रह जाती है.
    जो इन्सान ज्ञान को सुनकर थोडा अपने अन्दर जाने देता है वो इन्सान अपनी जिंदगी में कुछ ढंग कर कर लेता है जिसकी कीमत पाँच हाजर की हो जाती है.
    और जो इन्सान ज्ञान को न तो कान से बहार करता है और न थोडा अन्दर जाने देता है बल्कि पूरा जाने देता है व अन्दर ही रहने देता है वो इन्सान अपने उस ज्ञान के इस्तेमाल से अपनी जिंदगी में बहुत आगे जाता है और उसकी कीमत पाँच लाख की हो जाती है.

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