राजा और वृद्ध: Motivational story in Hindi
- 2020-08-07 05:07:20
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- Written by : Unknown
ठण्ड का मौसम था. शीतलहर पूरे राज्य में बह रही थी. कड़ाके की ठण्ड में भी उस दिन राजा सदा की तरह अपनी प्रजा का हाल जानने भ्रमण पर निकला था.
महल वापस आने पर उसने देखा कि महल के मुख्य द्वार के पास एक वृद्ध (Old Man) बैठा हुआ है. पतली धोती और कुर्ता पहने वह वृद्ध ठण्ड से कांप रहा था. कड़ाके की ठण्ड में उस वृद्ध को बिना गर्म कपड़ों के देख राजा चकित रह गया.
उसके पास जाकर राजा ने पूछा, “क्या तुम्हें ठण्ड नहीं लग रही?”
“लग रही है. पर क्या करूं? मेरे पास गर्म कपड़े नहीं है. इतने वर्षों से कड़कड़ाती ठण्ड मैं यूं ही बिना गर्म कपड़ों के गुज़ार रहा हूँ. भगवान मुझे इतनी शक्ति दे देता है कि मैं ऐसी ठण्ड सह सकूं और उसमें जी सकूं.” वृद्ध ने उत्तर दिया.
राजा को वृद्ध पर दया आ गई. उसने उससे कहा, “तुम यहीं रुको. मैं अंदर जाकर तुम्हारे लिए गर्म कपड़े भिजवाता हूँ.”
वृद्ध प्रसन्न हो गया. उसने राजा को कोटि-कोटि धन्यवाद दिया.
वृद्ध को आश्वासन देकर राजा महल के भीतर चला गया. किंतु महल के भीतर जाकर वह अन्य कार्यों में व्यस्त हो गया और वृद्ध के लिए गर्म कपड़े भिजवाना भूल गया.
अगली सुबह एक सिपाही ने आकर राजा को सूचना दी कि महल के बाहर एक वृद्ध मृत पड़ा है. उसके मृत शरीर के पास ज़मीन पर एक संदेश लिखा हुआ है, जो वृद्ध ने अपनी मृत्यु के पूर्व लिखा था.
संदेश यह था : “इतने वर्षों से मैं पतली धोता-कुर्ता पहने ही कड़ाके की ठण्ड सहते हुए जी रहा था. किंतु कल रात गर्म वस्त्र देने के तुम्हारे वचन ने मेरी जान ले ली.”
सीख (moral of this moral story in hindi) – दूसरों से की गई अपेक्षायें अक्सर हमें उन पर निर्भर बना देती है, जो कहीं न कहीं हमारी दुर्बलता का कारण बनती है. इसलिए, अपनी अपेक्षाओं के लिए दूसरों पर निर्भर रहने के स्थान पर स्वयं को सबल बनाने का प्रयास करना चाहिए.
Bonus Story - जौहरी की मूर्खता
एक गाँव में मेला (Fair) लगा हुआ था. मेले में मनोरंजन के कई साधनों के अतिरिक्त श्रृंगार, सजावट और दैनिक जीवन में उपयोग में आने वाली वस्तुओं की अनेक दुकानें थी. शाम होते ही मेले की रौनक बढ़ जाती थी.
एक शाम रोज़ की तरह मेला सजा हुआ था. महिला, पुरुष और बच्चे सभी मेले का आनंद उठा रही थी. दुकानों में अच्छी-ख़ासी भीड़ उमड़ी हुई थी. उन्हीं दुकानों में से एक दुकान कांच से निर्मित वस्त्तुओं की थी, जिसमें कांच के बर्तन और गृह सज्जा की कई वस्तुयें बिक रही थी. अन्य दुकानों की अपेक्षा उस दुकान में लोगों की भीड़ कुछ कम थी.
एक जौहरी भी उस दिन मेले में घूम रहा था. घूमते-घूमते जब वह उस दुकान के पास से गुजरा, तो उसकी नज़र एक चमकते हुए कांच के टुकड़े पर अटक गई. उसकी पारखी नज़र तुरंत ताड़ गई कि वह कोई साधारण कांच का टुकड़ा नहीं, बल्कि बेशकीमती हीरा है.
वह समझ गया कि दुकानदार इस बात से अनभिज्ञ है. वह दुकान में गया और उस हीरे को उठाकर दुकानदार से उसकी कीमत पूछने लगा, “भाई, जरा इसकी कीमत तो बताना?”
दुकानदार बोला, “ये मात्र २० रूपये का है.”
जौहरी लालची था. वह कम से कम कीमत में उस कीमती हीरे को हथियाने की फ़िराक में था. वह दुकानदार से मोल-भाव करने लगा, “नहीं भाई…इतनी कीमत तो मैं नहीं दे सकता. मैं तुम्हें इसके १५ रूपये दे सकता हूँ. १५ रुपये में तुम मुझे ये दे सकते हो, तो दे दो.”
दुकानदार उस कीमत पर राज़ी नहीं हुआ. उस समय दुकान में कोई ग्राहक नहीं था. जौहरी ने सोचा कि थोड़ी देर मेले में घूम-फिरकर वापस आता हूँ. हो सकता है, तब तक इसका मन बदल जाए और ये १५ रूपये में मुझे यह कीमती हीरा दे दे. यह सोच हीरा बिना खरीदे वह वहाँ से चला गया.
कुछ देर बाद जब वह पुनः उस दुकान में लौटा, तो हीरे को नदारत पाया. उसने फ़ौरन दुकानदार से पूछा, “यहाँ जो कांच का टुकड़ा था, वो कहाँ गया?”
“मैंने उसे २५ रूपये में बेच दिया.” दुकानदार ने उत्तर दिया.
जौहरी ने अपना सिर पीट लिया और बोला, “ये तुमने क्या किया? तुम बहुत बड़े मूर्ख हो. वह कोई कांच का टुकड़ा नहीं, बल्कि बेशकीमती हीरा था. मात्र २५ रूपये में तुमने उसे बेच दिया.”
“मूर्ख मैं नहीं तुम हो. मैं तो नहीं जानता था कि वह बेशकीमती हीरा है. पर तुम तो जानते थे. फिर भी तुम मुझसे मोल-भाव कर ५ रूपये बचाने में लगे रहे और हीरा बिना ख़रीदे ही दुकान से चले गए.” दुकानदार ने उत्तर दिया.
दुकानदार का उत्तर सुन जौहरी अपनी मूर्खता पर पछताने लगा और पछताते हुए खाली हाथ वापस लौट गया.
सीख (moral of this moral story in hindi) – मूर्खता और लालच दोनों नुकसान का कारण हैं.