• असली खजाना

    असली खजाना: Mind blowing short story in Hindi

    • 2020-08-01 02:38:25
    • Puplic by : Admin
    • Written by : Unknown
    लम्बे समय से बीमार चल रहे दादा जी की तबियत अचानक ही बहुत अधिक बिगड़ गयी. दादी का बहुत पहले ही देहांत हो चुका था, बड़ा बेटा उनकी देखभाल करता था.
    अंतिम समय जानकर उन्होंने अपने चारों बहु-बेटों को पास बुलाया. पर जिस दिन सब इकठ्ठा हुए उस दिन उनकी तबियत इतनी खराब हो गयी कि वो बोल भी नहीं पा रहे थे… फिर उन्होंने इशारे से कलम मांगी और एक कागज पर कांपते हाथों से कुछ लिखने लगे…
    पर जैसे ही उन्होंने एक शब्द लिखा उनकी मौत हो गयी…
    कागज पे “आम” लिखा देख सबने सोचा कि शायद वे अंतिम समय में अपना पसंदीदा फल आम खाना चाहते थे.
    उनकी आखिर इच्छा जान कर उनके मृत्यु भोज में कई क्विंटल आम बांटें गए.
    कुछ समय बाद भाइयों ने पुश्तैनी प्रॉपर्टी बेचने का फैसला लिया और एक बिल्डर को अच्छे दाम में सबकुछ बेच दिया.
    बिल्डर ने कुछ दिन बाद जब वहां काम लगवाया. पुरानी बिल्डिंग तोड़ी जाने लगी, बागीचे के पेड़ पौधे उखाड़े जाने लगे.
    और उस दिन जब आम का पेड़ उखाड़ा गया तो मजदूरों की आँखें फटी की फटी रह गयीं… पेड़ के ठीक नीचे दशकों से गड़ा एक पुराना संदूक पड़ा हुआ था.
    बिल्डर ने फ़ौरन मजदूरों को पीछे किया और संदूक खोलने लगा…
    संदूक में कई करोड़ मूल्य के हीरे-जवाहरात चमचमा रहे थे.
    बिल्डर मानो ख़ुशी से पागल हो गया…जितने की प्रॉपर्टी नहीं थी उसकी सौ-गुना कीमत वाले खजाने पर अब उसका हक था.भाइयों को जब इस बारे में पता चला तो उन्हें बड़ा पछतावा हुआ, कोर्ट-कचहरी के चक्कर भी लगाए पर फैसला बिल्डर के हक में गए.
    चारो भाई जब एक दिन मुंह लटकाए बैठे थे तभी अचानक छोटा भाई बोला…
    “अरे…. उस दिन बाबूजी ने इसलिए कागज पर आम नहीं लिखा था क्योंकि उन्हें आम खाना था…वो तो हमें इसे खजाने का पता बताना चाहते थे.”
    चारों बेटे मन ही मन सोचने लगे… जीवन भर हम उस पेड़ के इर्द-गिर्द रहे, किनती बार उस पे चढ़े-उतरे, उस जमीन पर चहल कदमी की… वो खजाना तब भी वहीँ पड़ा हुआ था पर हम उसके बारे में कुछ नहीं जान पाए और अंत में वो हमारे हाथ से निकल गया.
    काश बाबूजी ने पहले ही हमें उसके बारे में बता दिया होता!
    दोस्तों, खजाना सिर्फ ज़मीन के नीचे नहीं छिपा होता, असली खजाना हमारे भीतर छिपा होता है. और वो हीरे-जवाहरातों से कहीं अधिक मूल्यवान होता है.
    लेकिन दुनिया के ज्यादातर लोग उस खजाने को कभी पा नहीं पाते… वो कभी भी अपने maximum potential को realize नहीं कर पाते…
    क्यों? क्योंकि वे beyond the obvious सोचने-करने की कोशिश ही नहीं करते.
    “आम” लिख दिया मतलब आम खाना है… कुछ और दिमाग ही मत लगाओ, सोचो ही मत… जैसे ज़िन्दगी चल रही है…चलने दो… जैसे सब करते आये हैं वैसे ही करते जाओ… रिस्क मत लो… पैदा हो…पढो-लिखो…नौकरी-धंधा करो…परिवार बनाओ…दुनिया से चले जाओ.
    अरबों लोग यही कर रहे हैं…हमने भी कर लिया तो क्या?
    अरे! जागो भाई! अपने खजाने को बर्बाद मत होने दो…कुरेदों अपने अन्दर की परतों को … पता करो उस महान चीज के बारे जिसे तुम करने के लिए पैदा हुए हो… अपनी uniqueness, अपनी आइडेंटिटी को भीड़ के पैरों तले कुचलने मत दो.
    और तभी आप असली खजाने के हक़दार हो पाओगे!

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