• आत्म-संतुष्टी

    आत्म-संतुष्टी: Short story which will motivate you

    • 2021-03-27 03:21:14
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    • Written by : Unknown
    पुराने समय की बात है,एक गाँव में दो किसान रहते थे। दोनों ही बहुत गरीब थे, दोनों के पास थोड़ी थोड़ी ज़मीन थी, दोनों उसमें ही मेहनत करके अपना और अपने परिवार का गुजारा चलाते थे।अकस्मात् कुछ समय पश्चात दोनों की एक ही दिन एक ही समय पे मृत्यु हो गयी। यमराज दोनों को एक साथ भगवान के पास ले गए।भगवान ने उन्हें देख के उनसे पूछा - अब तुम्हे क्या चाहिये।तुम्हारे इस जीवन में क्या कमी थी और अब तुम्हें क्या बना के मैं पुनः संसार में भेजूं। भगवान की बात सुनकर उनमे से एक किसान बड़े गुस्से से बोला -  हे भगवान ! आपने इस जन्म में मुझे बहुत कष्टमय ज़िन्दगी दी थी। आपने कुछ भी नहीं दिया था मुझे। पूरी ज़िन्दगी मैंने बैल की तरह खेतो में काम किया है, जो कुछ भी कमाया वह बस पेट भरने में लगा दिया, ना ही मैं कभी अच्छे कपड़े पहन पाया और ना ही कभी अपने परिवार को अच्छा खाना खिला पाया। जो भी पैसे कमाता था, कोई आकर के मुझसे लेकर चला जाता था और मेरे हाथ में कुछ भी नहीं आया।देखो! कैसी जानवरों जैसी ज़िन्दगी जी है मैंने। उसकी बात सुनकर भगवान कुछ समय मौन रहे और पुनः उस किसान से पूछा - तो अब क्या चाहते हो तुम इस जन्म में। मैं तुम्हे क्या बनाऊँ। भगवान का प्रश्न सुनकर वह किसान पुनः बोला - भगवन!! आप कुछ ऐसा कर दीजिये, कि मुझे कभी किसी को कुछ भी देना ना पड़े। मुझे तो केवल चारो तरफ से पैसा ही पैसा मिले!! अपनी बात कहकर वह किसान चुप हो गया। भगवान से उसकी बात सुनी और कहा- तथास्तु- तुम अब जा सकते हो मैं तुम्हे ऐसा ही जीवन दूँगा जैसा तुमने मुझसे माँगा है। उसके जाने पर भगवान ने पुनः दूसरे किसान से पूछा, तुम बताओ तुम्हे क्या बनना है। तुम्हारे जीवन में क्या कमी थी, तुम क्या चाहते हो?” उस किसान ने भगवान के सामने हाथ जोड़ते हुए कहा - हे भगवन! आपने मुझे सब कुछ दिया है मैं आपसे क्या मांगू? आपने मुझे एक अच्छा परिवार दिया, मुझे कुछ जमीन दी जिसपे मेहनत से काम करके मैंने अपना परिवार को एक अच्छा जीवन दिया। खाने के लिए आपने मुझे और मेरे परिवार को भरपेट खाना दिया। मैं और मेरा परिवार कभी भूखे पेट नहीं सोया। बस एक ही कमी थी मेरे जीवन में, जिसका मुझे अपनी पूरी ज़िन्दगी अफ़सोस रहा और आज भी हैं। मेरे दरवाजे पे कभी कुछ भूखे और प्यासे लोग आते थे। भोजन माँगने के लिए, परन्तु कभी कभी मैं भोजन न होने के कारण उन्हें खाना नहीं दे पाता था, और वो मेरे द्वार से भूखे ही लौट जाते थे। ऐसा कहकर वह चुप हो गया।”

    प्रभुजी! इतना दीजिये जा में कुटुम्ब समाय! में भी भूखा न रहूँ। साधु भी भूखा न जाये! भगवान ने उसकी बात सुनकर उससे पूछा -तो अब क्या चाहते हो तुम, इस जन्म में।मैं तुम्हें क्या बनाऊँ। किसान ने भगवान से हाथ जोड़ते हुए विनती करते हुए कहा - हे प्रभु! आप कुछ ऐसा कर दो कि मेरे द्वार से कभी कोई भूखा प्यासा ना जाये।भगवान ने कहा - तथास्तु। तुम जाओ तुम्हारे द्वार से कभी कोई भूखा-प्यासा नहीं जायेगा। अब दोनों का पुनः उसी गाँव में एक साथ जन्म हुआ।  दोनों बड़े हुए।  पहला व्यक्ति जिसने भगवान से कहा था कि उसे चारो तरफ से केवल धन मिले और मुझे कभी किसी को कुछ देना ना पड़े,वह व्यक्ति उस गाँव का सबसे बड़ा भिखारी बना। अब उसे किसी को कुछ देना नहीं पड़ता था और जो कोई भी आता उसकी झोली में पैसे डाल के ही जाता था।दूसरा व्यक्ति जिसने भगवान से कहा था कि उसे कुछ नहीं चाहिए केवल इतना हो जाये की उसके द्वार से कभी कोई भूखा प्यासा ना जाये,वह उस गाँव का सबसे अमीर आदमी बना। कथा सार  मित्रो! ईश्वर ने जो भी दिया है उसी में संतुष्ट होना बहुत जरुरी हैं।अक्सर देखा जाता है कि सभी लोगों को हमेशा दूसरे की चीज़ें ज्यादा पसंद आती हैं और इसके चक्कर में वो अपना जीवन भी अच्छे से नहीं जी पाते। मित्रों हर बात के दो पहलू होते हैं -सकारात्मक और नकारात्मक। अब यह आपकी सोच पर निर्भर करता है कि आप चीज़ों को नकारत्मक रूप से देखते हैं या सकारात्मक रूप से।

    अच्छा जीवन जीना है तो अपनी सोच को अच्छा बनाइये,चीज़ों में कमियाँ मत निकालिये बल्कि जो भगवान ने दिया है उसका आनंद लीजिये और हमेशा दूसरों के प्रति सेवा भाव रखिये । मित्रो! सब कुछ इकट्ठा भी उन्हीं के पास होता है जो बाँटनां जानते हैं‌। वह चाहे भोजन हो, धन हो या मान-सम्मान हो !! हम बदलेंगे, युग बदलेगा।


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