• अच्छाई का प्रसार

    अच्छाई का प्रसार: hindi motivational story

    • 2021-04-07 03:24:26
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    • Written by : Unknown
    एक बार की बात है, एक साधु महाराज अपने एक शिष्य के साथ दूर प्रदेश से अपने कुटिया के तरफ जा रहे है, तो दूर यात्रा के कारण वे दोनों लोग काफी थक गए थे, और उन्हे बहुत जोरों से भूख प्यास भी लगी थी, लेकिन काफी दूर चलने के बाद एक घने जंगल से गुजरने लगे, जिस कारण से अधिक थकाव के कारण उन्हे और भी तेज भूख प्यास लगने लगी, फिर वे जंगल पार कर आगे पहुचे तो उन्हे पास मे एक गाँव दिखाई दिया, तो शिष्य को कुछ भोजन मिलने की आस लगी, फिर साधू महाराज अपने शिष्य के साथ वे गाँव मे पहुचे और व्यक्ति से भिक्षा के रूप मे भोजन मांगा तो वह व्यक्ति साधू महाराज को दुतकारते हुए बोला की “पता नही कहा कहा से लोग यहा चले आते है, और ऐसे लोगो को मुफ्त मे भोजन चाहिए, साधू के भेष मे बहरूपिये भी होते है, जो काम धाम तो करना नहीं चाहते है,” और इस तरफ साधू को काफी भला बुरा कहने लगा, तो साधू महाराज उसकी बातों को नजरंदाज करते हुए आशीर्वाद दिये और बोले “तुम हमेसा इसी गाँव मे रहो” और फिर साधु महाराज आगे बढ़ गए और उन्हे आगे चलकर एक दूसरा गाँव दिखाई दिया, फिर साधू महाराज ने एक और व्यक्ति से भोजन और पानी की मांग किया, तो अपने घर पर अतिथि के रूप मे सिद्ध साधू महाराज को आने पर वह व्यक्ति काफी प्रसन्न हुआ, और काफी आथित्य के साथ साधू महाराज का स्वागत किया उन्हे आसन पर बिठाया फिर अपने पत्नी के साथ उनके चरणों को धोये, फिर पत्नी को अच्छे और स्वादिष्ट पकवान बनाने को कहा, फिर कुछ समय मे उस व्यक्ति ने खूब अच्छे भोजन बना दिये और पूरे सेवा सत्कार भाव के साथ साधू और उनके शिष्य के लिए भोजन लगाया, फिर साधू और उनके शिष्य भरपेट भोजन किया और थोड़ी देर विश्राम किया, फिर वे उस व्यक्ति के घर से जाने लगे और साधू महाराज उस व्यक्ति की सेवा से प्रसन्न होकर उन्हे आशीर्वाद दिया की आप लोग सिर्फ इसी गाँव मे न रहकर पूरे देश मे इनकी प्रसिद्धि और अच्छाई का प्रसार हो जाए, और यह कहकर साधू अपने यात्रा के लिए आगे निकाल गए। लेकिन साधू महाराज की माहरज की बातों को सुनकर उनका शिष्य रास्ते भर सोचता रहा की भला साधू महाराज जी ने ऐसा क्यो आशीर्वाद दिया, उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था, फिर उत्सुकतावश शिष्य ने अपने मन मे उठे दुविधा को साधू महाराज से बता दिया, तो साधू महाराज ने उन दोनों व्यक्ति को जो आशीर्वाद दिया उसके बारे मे विस्तार से बताया की वह पहला व्यक्ति जो की उन्हे काफी भला बुरा कहा था, उसे सिर्फ उसी गाँव तक सीमित रहने का आशीर्वाद दिया था ताकि वह अपने बुरे व्यवहार को औरों तक न पहुचाए, इसलिए ऐसे व्यक्ति को अपने तक ही सीमित रहना चाहिए, ताकि और लोग उसी बुरी आदतों को ग्रहण न कर पाये, नहीं तो सभी उसके जैसा ही व्यवहार करने लगेगे। जबकि जो व्यक्ति ने उनको सेवा भाव से भोजन कराया था, ऐसे व्यक्ति का अच्छाई सिर्फ उसी गाँव तक सीमित नही रहना, और लोग अभी उसकी अच्छी बातों को सीख सके, और अच्छा व्यवहार कर सके, इसलिए उसकी अच्छाई का प्रचार प्रसार हो, इसलिए ऐसे व्यक्तियों को सिर्फ एक जगह न होकर हर जगह होना चाहिए, इसलिए उसे पूरे देश मे होने के लिए आशीर्वाद दिया था। साधू महाराज की यह बात सुनकर उस शिष्य को यह समझ आ गया था, की अच्छे लोगो को हर जगह होना चाहिए, इस तरह उस शिष्य की दुविधा दूर हो गया था, और फिर वे अपने कुटिया की तरफ चले गए।

    इस कहानी से हमे यही शिक्षा मिलती है, की हमारे पास को अथिति आए, उसके साथ अच्छा व्यवहार करना चाहिए, क्यूकी हमारे यहा अथितियों को भगवान का रूप माना जाता है, उनके दिये आशीर्वाद से हमारी प्रसिद्धि फैलती है, इसलिए हमे लोगो के साथ हमेसा अच्छा व्यवहार करना चाहिए और जो लोग अच्छा व्यवहार करते है, उनके लिए सभी अच्छी ही कामना करते है।


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