किसी शहर में एक अँधा आदमी रहता था वह अँधा आदमी अक्सर रात के अँधेरे में अपने साथ लैम्प | Lamp यानि लालटेन साथ रखता था एक बार की बात है वह अँधा आदमी रात के अँधेरे में अपने साथ प्रकाश का लैंप साथ में लिए जा रहा था की तभी उसके पास से उसके जानने वाले कुछ व्यक्ति गुजरे और उस अंधे आदमी के हाथ में लालटेन को देखकर वे सभी व्यक्ति अंधे व्यक्ति |
The Blind Man का मजाक उड़ाते हुए कहा की “जब आप देख ही नही सकते हो तो भला आपके हाथ में यह प्रकाश का लैम्प होने से क्या फायदा” तो उस अंधे व्यक्ति ने ने नम्रतापूर्वक कहा की “यह लैम्प मेरे लिए नही है यह लैम्प आप लोगो के लिए है मै तो अँधेरे में भी चल सकता हु क्यूकी मेरा जीवन ही अँधेरे से भरा पड़ा है जिससे मुझे अँधेरे में जीने की आदत बन गयी है लेकिन आप लोग तो सिर्फ दिन के उजाले में ही देख सकते हो और आप लोगो को अँधेरे में देखने की समस्या होती है इसलिए आप लोग मुझे अँधेरे में चलते हुए धक्का न दे दो इसलिए यह लैम्प आप लोगो के लिए मै अपने साथ रखता हु” अंधी व्यक्ति की यह बात सुनकर वे सभी व्यक्ति बहुत ही अपने आप पर शर्मिंदा हुए और उस अंधे व्यक्ति से क्षमा प्राथना की और सबने निर्णय किया की अब भविष्य में कभी भी बिना विचारे कुछ भी नही बोलेगे |कभी भी किसी के प्रति हमे बोलने से हम क्या बोलने जा रहे है उसके बारे में जरुर सोचना चाहिए |
हमारे यहाँ तीर्थ यात्रा का बहुत ही महत्त्व है। पहले के समय यात्रा में जाना बहुत कठिन था। पैदल या तो
बैल गाड़ी में यात्रा की जाती थी। थोड़े थोड़े अंतर पे रुकना होता था। विविध प्रकार के लोगो से मिलना होता था, समाज का दर्शन होता था। विविध बोली और विविध रीति-रीवाज से परिचय होता था। कंई कठिनाईओ से गुजरना पड़ता, कंई अनुभव भी प्राप्त होते थे।
एकबार तीर्थ यात्रा पे जानेवाले लोगो का संघ संत तुकाराम जी के पास जाकर उनके साथ चलनेकी प्रार्थना की। तुकारामजी ने अपनी असमर्थता बताई। उन्होंने तीर्थयात्रियो को एक कड़वा कद्दू देते हुए कहा : “मै तो आप लोगो के साथ आ नहीं सकता लेकिन आप इस कद्दू को साथ ले जाईए और जहाँ – जहाँ भी स्नान करे, इसे भी पवित्र जल में स्नान करा लाये।”
लोगो ने उनके गूढार्थ पे गौर किये बिना ही वह कद्दू ले लिया और जहाँ – जहाँ गए, स्नान किया वहाँ – वहाँ स्नान करवाया; मंदिर में जाकर दर्शन किया तो उसे भी दर्शन करवाया। ऐसे यात्रा पूरी होते सब वापस आए और उन लोगो ने वह कद्दू संतजी को दिया। तुकारामजी ने सभी यात्रिओ को प्रीतिभोज पर आमंत्रित किया। तीर्थयात्रियो को विविध पकवान परोसे गए। तीर्थ में घूमकर आये हुए कद्दूकी सब्जी विशेष रूपसे बनवायी गयी थी। सभी यात्रिओ ने खाना शुरू किया और सबने कहा कि “यह सब्जी कड़वी है।” तुकारामजी ने आश्चर्य बताते कहा कि “यह तो उसी कद्दू से बनी है, जो तीर्थ स्नान कर आया है। बेशक यह तीर्थाटन के पूर्व कड़वा था, मगर तीर्थ दर्शन तथा स्नान के बाद भी इसी में कड़वाहट है !”
यह सुन सभी यात्रिओ को बोध हो गया कि ‘हमने तीर्थाटन किया है लेकिन अपने मन को एवं स्वभाव को सुधारा नहीं तो तीर्थयात्रा का अधिक मूल्य नहीं है। हम भी एक कड़वे कद्दू जैसे कड़वे रहकर वापस आये है।’