• यह संसार एक वृक्ष स्वरूप है

    यह संसार एक वृक्ष स्वरूप है: Inspirational stroy

    • 2021-04-01 01:28:32
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    • Written by : Unknown
    एक बार एक राजा अपने सहचरों के साथ शिकार खेलने जंगल में गया था।  वहाँ शिकार के चक्कर में एक दूसरे से बिछड गये और एक दूसरे को खोजते हुये राजा एक नेत्रहीन संत की कुटिया में पहुँच कर अपने विछडे हुये साथियों के बारे में पूंछा |  नेत्र हीन संत ने कहा महाराज सबसे पहले आपके सिपाही गये हैं, बाद में आपके मंत्री गये, अब आप स्वयं पधारे हैं।  इसी रास्ते से आप आगे जायें तो मुलाकात हो जायगी |  संत के बताये हुये रास्ते में राजा ने घोडा दौड़ाया और जल्दी ही अपने सहयोगियों से जा मिला और नेत्रहीन संत के कथनानुसार ही एक दूसरे  से आगे पीछे पहुंचे थे।  यह बात राजा के दिमाग में घर कर गयी कि नेत्रहीन संत को कैसे पता चला कि कौन किस ओहदे  वाला जा रहा है।  लौटते समय राजा अपने अनुचरों को  साथ लेकर संत की कुटिया में पहुंच कर संत से प्रश्न किया कि आप नेत्र विहीन होते हुये कैसे जान गये कि कौन जा रहा है कौन आ रहा है ?  राजा की बात सुन कर नेत्रहीन संत ने कहा महाराज आदमी की हैसियत का ज्ञान नेत्रों से नहीं उसकी बातचीत से होती है | सबसे पहले जब आपके सिपाही मेरे पास से गुजरे तब उन्होने मुझसे पूछा कि ऐ अंधे इधर से किसी के जाते हुये की आहट सुनाई दी क्या? तो मैं समझ गया कि-  

    यह संस्कार विहीन व्यक्ति छोटी पदवी वाले सिपाही ही होंगे | जब आपके मंत्री जी आये तब उन्होंने पूछा बाबा जी इधर से किसी को जाते हुये  तो मैं समझ गया कि यह किसी उच्च ओहदे वाला है | क्योंकि बिना संस्कारित व्यक्ति किसी बडे पद पर आसीन नहीं होता  इसलिये मैंने आपसे कहा कि सिपाहियों के पीछे मंत्री जी गये हैं । जब आप स्वयं आये तो  आपने कहा सूरदास जी महाराज आपको इधर से निकल कर जाने वालों की आहट तो नहीं मिली  मैं समझ गया कि आप राजा ही हो सकते हैं । क्योंकि आपकी वाणी में आदर सूचक शब्दों का समावेश था और  दूसरे का आदर वही कर सकता है जिसे दूसरों से आदर प्राप्त होता है  क्योंकि जिसे कभी कोई चीज नहीं मिलती तो वह उस वस्तु के गुणों को कैसे  जान सकता है।  दूसरी बात यह संसार एक वृक्ष स्वरूप है जैसे वृक्ष में डालियाँ तो बहुत होती हैं पर जिस डाली में ज्यादा फल लगते हैं वही झुकती है । इसी अनुभव के आधार में मैं नेत्रहीन होते हुये भी सिपाहियों, मंत्री और आपके पद का पता बताया अगर गलती हुई हो महाराज क्षमा करें । राजा संत अनुभव से प्रसन्न हो कर संत की जीवन व्रत्ति का प्रबंन्ध राजकोष से करने का मंत्री जी को आदेशित कर वापस राजमहल आया। तात्पर्य ~आजकल हमारा मध्यमवर्ग परिवार संस्कार विहीन होता जा रहा है।   थोडा सा पद,पैसा व प्रतिष्ठा पाते ही  दूसरे की  उपेक्षा करते है , जो  उचित नहीं है।  मधुर भाषा बोलने में किसी प्रकार का आर्थिक नुकसान नहीं होता है।

    अतः मीठा बोलने में कंजूसी नहीं करनी चाहीये बहुत पहले आप ने एक चिड़िया की कहानी सुनी होगी जिसका एक दाना पेड़ के कंदरे में कहीं फंस गया था चिड़िया ने पेड़ से बहुत अनुरोध किया उस दाने को दे देने के लिए लेकिन पेड़ उस छोटी सी चिड़िया की बात भला कहां सुनने वाला था | हार कर चिड़िया बढ़ई के पास गई और उसने उससे अनुरोध किया कि तुम उस पेड़ को काट दो, क्योंकि वो उसका दाना नहीं दे रहा भला एक दाने के लिए बढ़ई पेड़ कहां काटने वाला था फिर चिड़िया राजा के पास गई और उसने राजा से कहा कि तुम बढ़ई को सजा दो क्योंकि बढ़ई पेड़ नहीं काट रहा और पेड़ दाना नहीं दे रहा. राजा ने उस नन्हीं चिड़िया को डांट कर भगा दिया कि कहां एक दाने के लिए वो उस तक पहुंच गई है।  चिड़िया हार नहीं मानने वाली थी वो महावत के पास गई कि अगली बार राजा जब हाथी की पीठ पर बैठेगा तो तुम उसे गिरा देना, क्योंकि राजा बढ़ई को सजा नहीं देता बढ़ई पेड़ नहीं काटता पेड़ उसका दाना नहीं देता महावत ने भी चिड़िया को डपट कर भगा दिया चिड़िया फिर हाथी के पास गई और उसने अपने अनुरोध को दुहराया कि अगली बार जब महावत तुम्हारी पीठ पर बैठे तो तुम उसे गिरा देना क्योंकि वो राजा को गिराने को तैयार नहीं राजा बढ़ई को सजा देने को तैयार नहीं बढ़ई पेड़ काटने को तैयार नहीं पेड़ दाना देने को राजी नहीं। हाथी बिगड़ गया उसने कहा, ऐ छोटी चिड़िया तू इतनी सी बात के लिए मुझे महावत और राजा को गिराने की बात सोच भी कैसे रही है?

    चिड़िया आखिर में चींटी के पास गई और वही अनुरोध दोहराकर कहा कि तुम हाथी की सूंढ़ में घुस जाओ चींटी ने चिड़िया से कहा, "चल भाग यहां से बड़ी आई हाथी की सूंढ़ में घुसने को बोलने वाली। अब तक अनुरोध की मुद्रा में रही चिड़िया ने रौद्र रूप धारण कर लिया...उसने कहा कि "मैं चाहे पेड़, बढ़ई, राजा, महावत, और हाथी का कुछ न बिगाड़ पाऊं...पर तुझे तो अपनी चोंच में डाल कर खा ही सकती हूँ  | चींटी डर गई...भाग कर वो हाथी के पास गई...हाथी भागता हुआ महावत के पास पहुंचा...महावत राजा के पास कि हुजूर चिड़िया का काम कर दीजिए नहीं तो मैं आपको गिरा दूंगा राजा ने फौरन बढ़ई को बुलाया उससे कहा कि पेड़ काट दो नहीं तो सजा दूंगा बढ़ई पेड़ के पास पहुंचा बढ़ई को देखते ही पेड़ बिलबिला उठा कि मुझे मत काटो…मैं चिड़िया को दाना लौटा दूंगा आपको अपनी ताकत को पहचानना होगा आपको पहचानना होगा कि भले आप छोटी सी चिड़िया की तरह होंगे, लेकिन ताकत की कड़ियां कहीं न कहीं आपसे होकर गुजरती होंगी... हर सेर को सवा सेर मिल सकता है, बशर्ते आप अपनी लड़ाई से घबराएं नहीं...आप अगर किसी काम के पीछे पड़ जाएंगे तो वो काम होकर रहेगा...
    यकीन कीजिए...

    हर ताकत के आगे एक और ताकत होती है और अंत में सबसे ताकतवर आप होते हैं.  हिम्मत, लगन और पक्का इरादा ही हमारी ताकत की बुनियाद है | बड़े सपनो को पाने वाले हर व्यक्ति को सफलता और असफलता के कई पड़ावों से गुजरना पड़ता है  पहले लोग मजाक उड़ाएंगे  फिर लोग साथ छोड़ेंगे  फिर विरोध करेंगे फिर वही लोग कहेंगे हम तो पहले से ही जानते थे की एक न एक दिन तुम कुछ बड़ा करोगे!


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