• भला असन्तोष से क्या लाभ

    भला असन्तोष से क्या लाभ: Inspiration story in Hindi

    • 2020-08-26 05:26:39
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    • Written by : Unknown
    एक शेर बहुत दुःखी हो उठा और एक दिन वह बह्माजी के सामने जा पहुंचा और लगा गिड़-गिड़ाने।
    भगवान! मेरे शरीर में बल, पराक्रम, साहस और मजबूत हैं कि उनकी बदौलत में जंगल का राजा बना फिरता हूँ।
    फिर भी एक मुर्गे की आवाज सुनते ही डर जाता हूँ - मेरे लिए शर्म की बात नहीं।
    प्रभु आपने मुझे पैदा करते समय मेरे पीछे कौन-सी बला लगा दी ?
    ब्रह्माजी ने शेर को समझाया - बेटा! यह कौन-सा असंतोष ले बैठे ? भला इससे कौन सा लाभ उठा लोगे ?
    जो संसार में पैदा होता है। वह किसी न किसी बात में कम रहता है और उससे लाभ भी उठाता है।
    जाओ, यह असंतोष छोड़ों और आनन्द से अपना समय बिताओ।
    ब्रह्माजी के इस प्रकार समझाने पर भी शेर को संतोष नहीं हुआ।
    वह मन में जलता-भुनता और ब्रह्माजी को कोस्टा हुआ वन की ओर लौटा।
    मार्ग में क्या देखता है कि सामने में एक लम्बा चौड़ा भारी भरकम हाथी अपने कान बराबर हिलाता चला आ रहा है।
    सूप जैसे बड़ा-बड़ा कान।
    शेर ने हाथी से पूछा क्यों भाई! अपने सूप जैसे बड़े-बड़े कान लगातार हिलाते हुए चल रहे हो ?
    हठी ने पैर आगे बढ़ाते-बढ़ाते उत्तर दिया-तुम इतना भी नहीं जानते ?
    इन भन-भन करते हुए मच्छरों से बहुत डरता हूँ।
    यदि इनमें से एक भी मच्छर मेरे कान में घुस जाए तो मैं बैचैन हो जाऊं तड़प-तपड़ कर मर जाऊं।
    यह सुनते ही शेर को संतोष हो गया उसने अपने आप को कहा - भला मेरे दुःखी होने का कोई कारण नहीं है।
    जब इतना बड़ा हाथी इतने छोटे मच्छर से रात दिन डरता है तब मैं मच्छर की उपेक्षा बहुत बड़े मुर्गे की आवाज से कांप उठता हूँ तो यह कौन सी अचरज की बात है।

    Bonus Story - कल करे सो आज कर

    एक सिपाही बहुत बलवान था, बहुत बहादुर था और बहुत लड़ने वाला था।
    उसका घोडा भी वैसा ही बलवान, बहादुर और लड़ने का हौसला रखने वाला था।
    एक दिन सिपाही अपने लड़ने घोड़े पर बैठकर किसी पहाड़ी रास्ते से जा रहा था। अचानक घोड़े का पैर पत्थर से टकराया और उसकी नाल निकल गई।
    नाल निकल जाने से घोडा को बहुत कष्ट हुआ और वह लंगड़ाकर चलने लगा।
    सिपाही ने घोड़े का कष्ट तो समझ ही लिया परन्तु उसकी विशेष चिंता नहीं की।
    बस वह उसी सोच में डूबा रहा।
    नाल बंधवा देगा। इस प्रकार आज-काल के चक्कर में दिन निकलते गए और घोड़े का कष्ट दूर न हुआ।
    अचानक देश पर शत्रुओं ने आक्रमण कर दिया। राजा की ओर से सिपाही को आज्ञा मिली। बस! चल फ़ौरन पर।
    अब सिपाही क्या करता। इतना समय ही कहाँ था की जो घोड़े के पैर में नाल बंधवा पाता।
    परन्तु लड़ाई पर तो जाना ही था इसलिए वह उसी लंगड़ाते हुए घोड़े पर बैठा और दूसरे सिपाहियों के साथ चल पड़ा।
    दुर्भाग्यवश घोड़े के दूसरे पैर से भी नाल निकल गई।
    पहले वह तीन पैर से कुछ चल भी लेता था। परन्तु अब तो पैर क्या करता।
    किस तरह आगे बढ़ता। देखते-देखते शत्रु सामने आ पहुंचे।
    वे संख्या में इतने अधिक थे कि उनके सामने सिपाही के साथ ठहर भी न सके। वे फ़ौरन अपने-अपने घोड़े दौड़ाकर लड़ाई के मैदान से भाग निकले।
    परन्तु वह सिपाही कैसे भागता। उनका लंगड़ा घोडा जहाँ का तहाँ खड़ा रह गया।
    सिपाही ने दुःख से हाथ मलते हुए कहा यदि मैं आज-कल के चक्कर में न पड़ा रहता और उसी दिन अपने घोड़े के पैरों में नई नाल बंधवा देता तो आज इस विपात्त में क्यों फंसता।

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