• कल करे सो आज कर

    कल करे सो आज कर: Story that will keep you motivated

    • 2020-08-26 05:20:49
    • Puplic by : Admin
    • Written by : Unknown
    एक सिपाही बहुत बलवान था, बहुत बहादुर था और बहुत लड़ने वाला था।
    उसका घोडा भी वैसा ही बलवान, बहादुर और लड़ने का हौसला रखने वाला था।
    एक दिन सिपाही अपने लड़ने घोड़े पर बैठकर किसी पहाड़ी रास्ते से जा रहा था। अचानक घोड़े का पैर पत्थर से टकराया और उसकी नाल निकल गई।
    नाल निकल जाने से घोडा को बहुत कष्ट हुआ और वह लंगड़ाकर चलने लगा।
    सिपाही ने घोड़े का कष्ट तो समझ ही लिया परन्तु उसकी विशेष चिंता नहीं की।
    बस वह उसी सोच में डूबा रहा।
    नाल बंधवा देगा। इस प्रकार आज-काल के चक्कर में दिन निकलते गए और घोड़े का कष्ट दूर न हुआ।
    अचानक देश पर शत्रुओं ने आक्रमण कर दिया। राजा की ओर से सिपाही को आज्ञा मिली। बस! चल फ़ौरन पर।
    अब सिपाही क्या करता। इतना समय ही कहाँ था की जो घोड़े के पैर में नाल बंधवा पाता।
    परन्तु लड़ाई पर तो जाना ही था इसलिए वह उसी लंगड़ाते हुए घोड़े पर बैठा और दूसरे सिपाहियों के साथ चल पड़ा।
    दुर्भाग्यवश घोड़े के दूसरे पैर से भी नाल निकल गई।
    पहले वह तीन पैर से कुछ चल भी लेता था। परन्तु अब तो पैर क्या करता।
    किस तरह आगे बढ़ता। देखते-देखते शत्रु सामने आ पहुंचे।
    वे संख्या में इतने अधिक थे कि उनके सामने सिपाही के साथ ठहर भी न सके। वे फ़ौरन अपने-अपने घोड़े दौड़ाकर लड़ाई के मैदान से भाग निकले।
    परन्तु वह सिपाही कैसे भागता। उनका लंगड़ा घोडा जहाँ का तहाँ खड़ा रह गया।
    सिपाही ने दुःख से हाथ मलते हुए कहा यदि मैं आज-कल के चक्कर में न पड़ा रहता और उसी दिन अपने घोड़े के पैरों में नई नाल बंधवा देता तो आज इस विपात्त में क्यों फंसता।

    Bonus Story - अक्ल बड़ी या भैंस

    एक गदहा मैदान में हरी-हरी कोमल-कोमल दूब चार रहा था था,
    अचानक जो उसने सर उठाया, तो एक बाघ को अपनी ओर आते देखा।
    गदहा समझ गया कि अब प्राण बचना असम्भव है।
    बाघ के सामने से भाग निकलना भी असम्भव है।
    फिर क्या करे ?
    यों ही प्राण खो दें। ?
    बड़े बूढ़े की कहावत बन गए हैं।
    अक्ल बड़ी या भैंस ? क्यों न आज वही कहावत काम में लायें बुद्धि से बल से नीचा दिखाएं और बाघ को उल्लू बनायें।
    पिछले एक पैर से लंगड़ा-लंगड़ा कर चलना शुरू कर दिया। बाघ ने गदहे के पास जाते-जाते पूछा-क्यों भाई गदहे! यह तू लंगड़ा-लंगड़ा कर क्यों चलता है ?
    गदहे ने उत्तर दिया-क्या कहें सरकार! दौड़ते समय पैर में एक बहुत लम्बा बहुत मोटा काटा चुभ गया है।
    उसी से पैर में बहुत कष्ट हो रहा है और मैं लंगड़ाकर चल रहा हूँ। बाघ ने पूछा -फिर ?
    गदहे ने कहा यदि खाने के विचार रखते हो तो पहले वह कांटा बाहर निकालो।
    कहीं ऐसा नहीं हो कि मुझे खाते समय वह कांटा गलती से तुम्हारे गले में अटक जाए और तुम्हें अपने प्राण खोने पड़े।
    बाघ को गदहे का कहना जँच गया। उसने गदहे का वह पैर उठाया और बड़े ध्यान से उसमें कांटा ढूँढना शुरू किया।
    गदहे ने यह मौका बहुत अच्छा समझा और कसकर दुलत्ती फटकारी तथा हवा के समान तेजी से भाग निकला।
    जो तड़ाक से दुलत्ती की चोट पड़ी तो बाघ का मुहं टेढ़ा हो गया उसके सामने वाले दांत झड़ गए और जबड़े खून से भर गए।
    बस वह लज्जित होकर कह उठा-उफ़। गदहे की बुद्धि के सामने बाघ का बल कुछ काम न आया।

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