-
Motivational story on सबसे बड़ा पुण्य क्या है
- 2021-04-01 04:08:37
- Puplic by : Admin
- Written by : Unknown
एक बहुत बड़ा माहन राजा प्रजापालक था, वह हमेशा प्रजा के हित में कार्य प्रयत्नशील रहता था. वह इतना बड़ा कर्मठ राजा था कि अपना सुख, ऐशो-आराम सब छोड़कर सारा समय जन-कल्याण में ही लगा देता था . यहाँ तक कि जो मोक्ष का साधन है अर्थात भगवत-भजन, उसके लिए भी वह समय नहीं निकाल पाता था.
एक दिन सुबह राजा वन की तरफ भ्रमण करने के लिए जा रहा था कि उसे एक चित्रगुप्त के दर्शन हुए. राजा ने चित्रगुप्त को प्रणाम करते हुए उनका अभिनन्दन किया और चित्रगुप्त के हाथों में एक लम्बी-चौड़ी पुस्तक देखकर उनसे पूछा- “ महाराज, आपके हाथ में यह क्या है?” चित्रगुप्त बोले- “राजन! यह हमारा बहीखाता है, जिसमे सभी हरि भजन करने वालों के नाम हैं.” राजा ने निराशायुक्त भाव से कहा- “कृपया देखिये तो इस बुक में कहीं मेरा नाम भी है या नहीं?”चित्रगुप्त महाराज किताब का एक-एक पृष्ठ देखने लगे, परन्तु राजा का नाम कहीं भी नजर नहीं आया. राजा चिंतित हो गया चित्रगुप्त ने राजा को चिंचित देखकर कहा- “राजन आप चिंतित न हो, राजा आपके ढूंढने में कोई भी कमी नहीं है. वास्तव में ये मेरा दुर्भाग्य है मैं हरि भजन-कीर्तन के लिए समय नहीं निकाल पता हूँ, इसीलिए मेरा नाम किताब में नहीं है.” राजा ने बहुत दुःखी हो गया उसे आत्म-ग्लानि-सी उत्पन्न हुई, फिर भी उसके बावजूद राजा नजर-अंदाज कर दिया और पुनः दूसरे लोगो की परोपकार की भावना से सेवा करने में लग गए. एक वर्ष बाद राजा फिर सुबह सुबह जंगल की तरफ भ्रमण के लिए निकले तो उन्हें वही चित्रगुप्त का दर्शन हुए, इस बार भी उनके हाथ में एक पुस्तक थी. रंग और आकार में काफी भेद भाव था, और यह पहली वाली से बहुत छोटी थी. राजा ने फिर उन्हें नमस्कार करते हुए पूछा- आज कौन सा बहीखाता आपने हाथों में लिए हुए हो। चित्रगुप्त ने कहा- “राजन! आज के बहीखाते में उन लोगों का नाम लिखा है जो भगवान को सबसे अधिक प्रेम हैं !” “कितने भाग्यशाली होंगे वे लोग? मन में राजा ने कहा- निश्चित ही वे दिन रात भगवान् का -भजन कीर्तन में लीन रहते होंगे !! राजा ने कहा - क्या इस पुस्तक में मेरे राज्य का किसी नागरिक का नाम है ? ”
प्रजापालक प्रेम प्रिय राजा था। चित्रगुप्त - ने बहीखाता खोला , राजन ये आश्चर्य की बात पहले पन्ने पर पहला नाम राजा का ही था। प्रजापालक राजा - आश्चर्यचकित होकर पूछा-चित्रगुप्त मेरा नाम इसमें कैसे लिखा हुआ है, मैं तो पूजा पाट न मंदिर कभी-कभार ही जा पाता हूँ ? चित्रगुप्त ने कहा- “ महाराज! इसमें आश्चर्य की बात क्या है? लोग निष्काम भाव होकर गरीब दुःखियों का सेवा करते हैं, जो मनुष्य इस संसार के उपकार में अपना जीवन निसार करते हैं. जो मानव मुक्ति का लोभ भी त्यागकर भगवान् के निर्बल संतानो की मुसीबत में सहायता का योगदान देते हैं. वही त्यागी महा मानव का भजन कीर्तन स्वयं ईश्वर करता है. ऐ राजन! आप पश्चाताप न पूजा-पाठ नहीं करता, लोगों की सेवा करे असल में ईश्वर की ही पूजा करता है. जो परोपकार और निःस्वार्थ लोकसेवा किसी भी उपासना से बढ़कर इस दुनिया में और कोई पुण्य नहीं हैं. वेदों का उदाहरण देते हुए चित्रगुप्त ने कहा- “कुर्वन्नेवेह कर्माणि'' जिजीविषेच्छनं'' समाः एवान्त्वाप ''नान्यतोअस्ति' व कर्म लिप्यते नरे..” अर्थात ‘ ईश्वर कहते है , हे मानव कर्म करते हुए - तुम सौ वर्ष जीने की(लालसा)ईच्छा करो पर कर्मबंधन में आप लिप्त हो जाओगे.’ महाराज ! ईश्वर दीनदयालु हैं. उन्हें खुशामद नहीं भाती - ''बल्कि लोगो का आचरण भाता है..
सच्ची निष्काम भक्ति राजन यही है, दुसरो की परोपकार करो. ईश्वर दीन-दुखियों का पर हित-साधन करो. अनाथ, गरीब , निसहाय, विधवा, किसान व निर्धन प्राणी आज के के युग में अत्याचारियों से सताए जाते हैं इनकी यथाशक्ति - तथाभक्ति सहायता तथा सेवा करो राजन यही परम भक्ति है..” चित्रगुप्त के माध्यम से राजा ने बहुत बड़ा ज्ञान मिल मिला (ज्ञान की बातें मिले तो ध्यान से सुने या पढ़े :) राजा अब समझ गया दुसरो का कस्ट दूर करना दुनिया में बड़ा कुछ भी नहीं है , जो लोग परोपकार करते हैं, वही भगवान् उसके सामान है और वही मनुष्य भगवान के सबसे प्रिय होते हैं।
आप व्हाट्सएप आदि पर स्टोरी शेयर करते हैं । वँहा कम लोगों तक ही आपकी बात पँहुच पाती है या मैसेज की भीड़ में लोग उसको पढ़ते भी नहीं हैं लेकिन अगर आप हमें स्टोरी भेजते हैं तो उसको हम आपके नाम के साथ पब्लिश करते हैं । भेजिये स्टोरी और जीतिए शानदार इनाम
Add Story
Leave a Comment
1 Comments
Amarjeet Das 2024-04-16 03:39:46
Namaskar