• बुराई से निपटने का स्टिक उपाय

    बुराई से निपटने का स्टिक उपाय: Inspirational story

    • 2021-04-06 01:43:26
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    एक संत के आश्रम में सैकड़ों गायें थी। गायों के दूध से जो भी धन आता उससे आश्रम का संचालन कार्य होता था। एक दिन एक शिष्य बोला - गुरु जी आश्रम के दूध में निरंतर पानी मिलाया जा रहा है। संत ने उसे रोकने का उपाय पूछा तो वह बोला - एक कर्मचारी रख लेते हैं, जो दूध की निगरानी करेगा। संत से स्वीकृति दे दी। अगले ही दिन कर्मचारी रख लिया गया। तीन दिन बाद व्ही शिष्य फिर आकर संत से बोला - इस कर्मचारी की नियुक्ति के बाद से तो दूध में और भी पानी मिल रहा है। संत ने कहा - एक और आदमी रख लो, जो पहले वाले पर नजर रखे। ऐसा ही किया गया। लेकिन दो दिन बाद तो आश्रम में हड़कंप मच गया। सभी शिष्य संत के पास आकर बोले - आज दूध में पानी तो था ही साथ ही एक मछली भी पाई गई। तब संत ने कहा - तुम मिलावट रोकने के लिए जितने अधिक निरीक्षक रखोगे, मिलावट उतनी ही अधिक होगी, क्योंकि पहले इस अनैतिक कार्य में कम कर्मचारियों का हिस्सा होता था तो कम पानी मिलता था। एक निरीक्षक रखने से उसके लाभ के मद्देनजर पानी की मात्रा और बढ़ गई। जब इतना पानी मिलाएंगे तो इसमें मछली नहीं तो क्या मक्खन मिलेगा ? शिष्यों ने संत से समाधान पूछा तो वे बोले - हमारी सबसे पहले कोशिश यह होनी चाहिए की हम उन लोगों को धर्म के मार्ग पर लाएं। हमें उनकी मानसिकता बदलकर उन्हें निष्ठावान बनाने की कोशिश करनी चाहिए ताकि वे यह कृत्य छोड़ दें। सार यह है कि बुराई पर प्रतिबंध लगाने के स्थान पर यदि आत्म-बोध जाग्रत किया जाए तो व्यक्ति स्वयं ही कुमार्ग का त्याग कर देता है। 

    Bonus Story -  प्रणाम का महत्व

    महाभारत का युद्ध चल रहा था | एक दिन दुर्योधन के व्यंग्य से आहत होकर “भीष्म पितामह” घोषणा कर देते हैं कि “मैं कल पांडवों का वध कर दूँगा” उनकी घोषणा का पता चलते ही पांडवों के शिविर में बेचैनी बढ़ गई- भीष्म की क्षमताओं के बारे में सभी को पता था इसलिए सभी किसी अनिष्ट की आशंका से परेशान हो गए। तब- श्रीकृष्ण ने द्रौपदी से कहा अभी मेरे साथ चलो- श्रीकृष्ण द्रौपदी को लेकर सीधे भीष्म पितामह के शिविर में पहुँच गए- शिविर के बाहर खड़े होकर उन्होंने द्रोपदी से कहा कि- अन्दर जाकर पितामह को प्रणाम करो-द्रौपदी ने अन्दर जाकर पितामह भीष्म को प्रणाम किया तो उन्होंने-
    “अखंड सौभाग्यवती भव” का आशीर्वाद दे दिया, फिर उन्होंने द्रोपदी से पूछा कि !! “वत्स, तुम इतनी रात में अकेली यहाँ कैसे आई हो, क्या तुमको श्रीकृष्ण यहाँ लेकर आए हैं” ? तब द्रोपदी ने कहा कि- “हाँ और वे कक्ष के बाहर खड़े हैं” तब भीष्म भी कक्ष के बाहर आ गए और दोनों ने एक दूसरे से प्रणाम किया- भीष्म ने कहा- “मेरे एक वचन को मेरे ही दूसरे वचन से काट देने का काम श्रीकृष्ण ही कर सकते हैं” शिविर से वापस लौटते समय श्रीकृष्ण ने द्रौपदी से कहा कि- “तुम्हारे एक बार जाकर पितामह को प्रणाम करने से तुम्हारे पतियों को जीवनदान मिल गया है”-अगर तुम प्रतिदिन भीष्म, धृतराष्ट्र, द्रोणाचार्य, आदि को प्रणाम करती होतीं और दुर्योधन, दुःशासन, आदि की पत्नियाँ भी पांडवों को प्रणाम करती होतीं, तो शायद इस युद्ध की नौबत ही न आती वर्तमान में हमारे घरों में जो इतनी समस्याए हैं उनका भी मूल कारण यही है कि – “जाने अनजाने अक्सर घर के बड़ों की उपेक्षा हो जाती है।” ” यदि घर के बच्चे और बहुएँ प्रतिदिन घर के सभी बड़ों को प्रणाम कर उनका आशीर्वाद लें तो, शायद किसी भी घर में कभी कोई क्लेश न हो “ बड़ों के दिए “आशीर्वाद” कवच की तरह काम करते हैं उनको कोई “अस्त्र-शस्त्र” नहीं भेद सकता। 


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