एक बार कुल्हाड़ी और लकड़ी के एक डंडे में विवाद छिड़ गया। दोनों स्वयं को शक्तिशाली बता रहे थे। हालाँकि लकड़ी का डंडा बाद में शांत हो गया, किन्तु कुल्हाड़ी का बोलना जारी रहा। कुल्हाड़ी में घमंड अत्यधिक था। वह गुस्से में भरकर बोल रही थी। तुमने स्वयं को समझ क्या रखा है ? तुम्हारी शक्ति मेरे आगे पानी भरती है। मैं चाहूँ तो बड़े-बड़े वृक्षों को पल में काटकर गिरा दूँ। धरती का सीना फाड़कर उसमें तालाब, कुआ बना दूँ। तुम मेरी बराबरी कर पाओगे ? मेरे सामने से हट जाओ अन्यथा तुम्हारे टुकड़े-टुकड़े कर दूंगी । लकड़ी का डंडा कुल्हाड़ी की अँहकारपूर्ण बातों को सुनकर धीरे से बोला - तुम जो कह रही हो, वह बिल्कुल ठीक है, किन्तु तुम्हारा ध्यान शायद एक बात की और नहीं गया। जो कुछ तुमने करने को कहा है, वेशक तुम कर सकती हो, किन्तु अकेले अपने दम पर नहीं कर सकती। कुल्हाड़ी ने चिढ़कर कहा, क्यों ? मुझमें किस बात की कमी है ? डंडा बोला - जब तक मैं तुम्हारी सहायता न करूं, तुम यह सब नहीं कर सकती हो | जब तक मैं हत्था बनकर तुममें न लगाया जाऊं, तब कोई किसे पकड़कर तुमसे ये सारे काम लेगा ? बिना हत्थे की कुल्हाड़ी से कोई काम लेना असंभव है। कुल्हाड़ी को अपनी भूल का एहसास हुआ और उसने डंडे से क्षमा मांगी। कथासार यह है कि दुनिया सहयोग से चलती है। जिस प्रकार ताली दोनों हाथों के मेल से बजती है, उसी प्रकार सामाजिक विकास भी परस्पर सहयोग से ही संभव होता है।
Bonus Story - बुराई से निपटने का स्टिक उपाय
एक संत के आश्रम में सैकड़ों गायें थी। गायों के दूध से जो भी धन आता उससे आश्रम का संचालन कार्य होता था। एक दिन एक शिष्य बोला - गुरु जी आश्रम के दूध में निरंतर पानी मिलाया जा रहा है। संत ने उसे रोकने का उपाय पूछा तो वह बोला - एक कर्मचारी रख लेते हैं, जो दूध की निगरानी करेगा। संत से स्वीकृति दे दी। अगले ही दिन कर्मचारी रख लिया गया। तीन दिन बाद व्ही शिष्य फिर आकर संत से बोला - इस कर्मचारी की नियुक्ति के बाद से तो दूध में और भी पानी मिल रहा है। संत ने कहा - एक और आदमी रख लो, जो पहले वाले पर नजर रखे। ऐसा ही किया गया। लेकिन दो दिन बाद तो आश्रम में हड़कंप मच गया। सभी शिष्य संत के पास आकर बोले - आज दूध में पानी तो था ही साथ ही एक मछली भी पाई गई। तब संत ने कहा - तुम मिलावट रोकने के लिए जितने अधिक निरीक्षक रखोगे, मिलावट उतनी ही अधिक होगी, क्योंकि पहले इस अनैतिक कार्य में कम कर्मचारियों का हिस्सा होता था तो कम पानी मिलता था। एक निरीक्षक रखने से उसके लाभ के मद्देनजर पानी की मात्रा और बढ़ गई। जब इतना पानी मिलाएंगे तो इसमें मछली नहीं तो क्या मक्खन मिलेगा ? शिष्यों ने संत से समाधान पूछा तो वे बोले - हमारी सबसे पहले कोशिश यह होनी चाहिए की हम उन लोगों को धर्म के मार्ग पर लाएं। हमें उनकी मानसिकता बदलकर उन्हें निष्ठावान बनाने की कोशिश करनी चाहिए ताकि वे यह कृत्य छोड़ दें। सार यह है कि बुराई पर प्रतिबंध लगाने के स्थान पर यदि आत्म-बोध जाग्रत किया जाए तो व्यक्ति स्वयं ही कुमार्ग का त्याग कर देता है।
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