•  सफलता का रहष्य

    सफलता का रहष्य Motivational story in Hindi

    • 2021-04-06 04:24:58
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    • Written by : Unknown
    एक बार की बात है एक नोजवान ने सुकरात से पूछा कि सफलता का रहस्य क्या है तो सुकरात ने कहा कि अगर तुम कल शाम को नदी के किनारे मिलो तो मैं तुम्हे सफ़लता का रहष्य बता सकता हु | वह लड़का शाम को सुकरात के पास पहुंचा  सुकरात उसको पानी के अंदर ले गए  लड़के को कुछ भी समझ में नही आ रहा था कि इस घटना से सफलता के रहष्य का क्या सम्बन्द्ध है लेकिन सुकरात ने उसे नदी के पानी मे डुबो दिया | थोड़ी देर बाद लड़का सांस के लिए तड़पने लगा | लेकिन सुकरात मजबूत थे उसको अपना मुंह बाहर नही निकालने दिया जब वह लड़का कुछ ज्यादा ही तड़पने लगा तो सुकरात ने उसे बाहर निकाल दिया और उस लड़के ने राहत की सांस ली उससे पूछा कि पानी के अंदर तुम्हारे दिमाग मे क्या चल रहा था तो उसने कहा मैं सिर्फ सांस के बारे में सोच रहा था कि कैसे भी करके मुझे सांस मिल जाये तो सुकरात ने कहा बस यही सफलता का रहष्य है जब तुम किसी लक्ष्य को पाने के लिए तड़प जाओ तो तुम्हे सफलता जरूर मिल जाएगी | कभी कभी आपने बच्चो को देखा होगा कैसे किसी वस्तु या चीज को पाने के लिए पूरे जी जान से जुटे रहते है और तब तक रोते रहते है जब तक उसे पा नही लेते हमे भी यही चीज बच्चो से सीखनी चाहिए  थोड़े अभ्यास के बाद हम भी छोटी छोटी चीजो में सफल होने लगेंगे जब छोटी छोटी चीजो में सफल हो जायेगें तो एक दिन बडा लक्ष्य भी जरूर हासिल करेंगे लाखो मील लम्बी यात्रा भी तो एक छोटे से कदम से ही शुरू होती है बस आगे बढ़ते रहो |

    Bonus Story - मूर्तिकार पिता और पुत्र की कहानी

    एक बहुत ही प्रसिद्ध मूर्तिकार था । बहुत ही सुंदर मूर्ति बनाता था, वो चाहता था कि उसका बेटा भी उससे बढ़िया मूर्तिकार बने और यही हुआ जैसा कि उसने सोचा वो भी मूर्तिकार बन चुका था। वक्त के साथ साथ वह अपने पिता जी से पूछता था कि उसने  मूर्ति केसी बनाई और उसके पिता हर बार इसकी मूर्तियों में कोई ना कोई खामी निकाल देते थे, लेकिन वह पिता की बात मानता गया और अच्छी अच्छी मुर्तिया बनाने लगा । एक समय ऐसा आ गया कि, अब पुत्र की मूर्तियां पिता की मूर्तियों से ज्यादा सुंदर और अच्छी है, लेकिन अब भी उसके पिता उसकी मूर्तियों में कमी निकाल ही देते थे,
    उसके सब्र का बांध टूट चुका था और उसको अपने आप पर अभिमान था कि वो पिता से बेहतर मुर्तिया बनाता है । वो झल्ला गया उन पर, अब उसके पिता ने मूर्ति पर टिप्पणी करना बंद कर दिया । जैसे जैसे वक्त गुजरता गया उसकी मुर्तिया अब पहले जैसी नही बन रही थी | और देखते ही देखते वह बहुत ही बेकार मुर्तिया बनाने लगा अब अंततः वह परेशान होकर पिताजी के पास गया पिता जी समझ गए थे कि ये वक्त जरूर आएगा और वो बोला कि मैं अब पहले से अच्छी मुर्तिया क्यों नही बना पा रहा हू? उन्होंने उत्तर दिया क्योंकि तुम अपने काम से सन्तुष्ठ होने लगे हो इसलिए , वो समझा नही । पिता ने कहा जब तुम्हे लगता है कि तुम बहुत अच्छी मूर्ति बनाते हो और इससे अच्छी ही बना सकते तो आगे बढ़ने की सम्भावना काफी कम है । हमेशा वही इंसान सफलता को आगे ले जा पाता है, जो यह  सोचता है कि कैसे मैं ओर भी ज्यादा अच्छा कर सकता हूँ। तो वो बोला कि आपको पता था कि ऐसा टाइम आएगा तो फिर आपने मुझे ये बात पहले क्यो नही बताई उन्होंने जवाब दिया की मेरे साथ भी ऐसा ही हुआ था । मैं भी नही समझा जब तुम्हारे दादा जी ने मुझे समझाने का प्रयास किया । कुछ बातें प्रयोग से ही समझ आती है । यही जीवन की सच्चाई है और फिर वो अपने पिता द्वारा दी हुई सीख अपनाते हुए अच्छी से अच्छी मुर्तिया बनाने लगा ।



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