• From Rags to Riches: The Inspiring Journey of Usain Bolt

    Story on Usain Bolt didn't even have the money to buy shoes

    • 2021-04-04 23:53:36
    • Puplic by : Admin
    • Written by : Unknown
    यह कहानी उस व्यक्ति की है, जो फर्श से अर्श तक पहुँचा है। कहानी उस व्यक्ति की, जो बचपन में खेलता था क्रिकेट, लेकिन आज धूम मचा रहा है एथलेटिक्स में और बन गया है दुनिया का सबसे तेज दौड़ने वाला। आप उसे उसैन बोल्ट (Usain Bolt) के नाम से जानते हैं, लेकिन मेरे लिए वह मेरा प्रिय बेटा ही है। मेरे पति वेलेस्ले गाँव में छोटी-सी दुकान चलाते हैं, इसलिए बचपन में उसैन को स्पोट्र्स शूज नहीं दिला पाए थे। स्कूल प्रबन्धन ने उसे ये जूते दिलाए, जिससे उसकी ट्रेनिंग ने रफ्तार पकड़ी। उसैन का जन्म जमैका के छोटे से गाँव ट्रेलॉनी पेरिश (शेरवुड कन्टेंट) में हुआ, जहाँ स्ट्रीट लाइट्स नहीं थी और पीने का पानी भी नहीं के बराबर था। जहाँ बजुर्ग आज भी गधे पर बैठकर इधर-उधर जाते हैं और लोगों को पीने के पानी के लिए सार्वजनिक नल के सामने घण्टों लाइन लगानी पड़ती है। उसैन बचपन में हाइपर एक्टिव था। वो जब तीन सप्ताह का था, तो मैं उसे बिस्तर पर लिटाकर कमरे से बाहर चली गई। जब मैं कमरे में आई, तो देखा वो बिस्तर से गिर गया था, लेकिन उस पर चढ़ने की कोशिश में जुटा हुआ था। उसी समय मुझे लग गया था कि यह साधारण बच्चा नहीं है। उसका जन्म तय समय से डेढ़ सप्ताह बाद हुआ था। मुझे लगता है। उसकी रफ्तार सिर्फ उसी समय धीमी रही होगी। मेरे पिता ने सबसे पहले यह नोट किया कि इस बच्चे में कुछ खास बात है। उसके बाद से मैंने उसैन के खान-पान पर ध्यान देना शुरू किया। हमने उसैन का एडमिशन विलियम निब स्कूल में कराया था। वहाँ की प्रिन्सिपल लोन थोप ने कुछ दिन बाद हमें बताया कि हमारा बेटा खेलों में बहुत अच्छा है, इसलिए उसकी ट्रेनिंग का ध्यान भी स्कूल ही रखेगा। बीजिंग में जब उसैन चैम्पियन बना, तो थोपें की खुशी देखने लायक थी। बीजिंग ओलम्पिक में रिकॉर्ड बनने के बाद, उस सफलता के बाद गाँव पर खूब पैसा बरसा। 

    Bonus Story - How to Change the World


    विश्वनाथ पूरे गाँव में अकेले पढ़े लिखे इंसान थे। एक स्कूल में सरकारी टीचर के तौर पर काम करते थे। बच्चों को शिक्षा देते देते एक दिन विचार आया कि क्यों ना कुछ ऐसा किया जाए जिससे दुनिया बदल जाये? क्यों ना पूरी दुनिया को सुधारा जाये? बस मन में आये इस विचार ने विश्वनाथ को रात भर सोने नहीं दिया। सुबह उठते ही वो गाँव के सरपँच के पास पहुँचे और बोले कि मैं इस दुनिया को बदलना चाहता हूँ। सरपँच उनकी बात सुनकर हँसने लगा- गुरूजी इतना आसान नहीं है दुनिया को बदलना, आप ये विचार छोड़ दें तो ही अच्छा है।
    लेकिन विश्वनाथ ने ठान लिया था और इसी वजह से वो कई लोगों से मिले पर कोई फायदा नहीं हुआ।अब वो अकेले ही सामाजिक कार्यों में लग गए लेकिन जल्दी ही ये सच्चाई समझ आ गयी कि दुनिया को बदलना इतना आसान नहीं है। तो मन में सोचा- दुनिया नहीं बदल सकता तो क्या मैं अपने देश को तो सुधार ही सकता हूँ। बस विश्वनाथ फिर से जुट गए। समय बीता, बहुत जल्दी ये अहसास हो गया कि देश को बदलना तो बहुत मुश्किल काम है तो सोचा क्यों ना अपने गाँव को सुधारा जाये, अगर मैं अपने गाँव को सुधार पाया तो ये भी अपने आप में बड़ी उपलब्धि होगी। इसी तरह विश्वनाथ ने अपना जीवन सामाजिक कार्यों में लगा दिया और समय के साथ अब वो बूढ़े हो चले थे। पर गाँव रहा वैसा का वैसा, एक दिन सोचा कि पूरे गाँव को नहीं बदला जा सकता तो क्यों न अपने परिवार को सुधारा जाये।
    समय और बीता, उम्र के साथ जब जीवन का अनुभव हुआ तो विश्वनाथ ने पाया कि एक काम जो सबसे आसान है, वो है खुद को बदलना, उन्हें अहसास हुआ कि काश मैंने खुद को बदला होता तो मेरा असर मेरे परिवार पर पड़ता फिर मेरे परिवार से पड़ोस सुधरता और फिर पड़ोस से पूरा गाँव। इसी तरह पूरा देश भी सुधर सकता था और फिर दुनिया को बदलते देर नहीं लगती। मित्रों, महल कितना बड़ा और विशाल क्यों ना हो लेकिन बनता वो ईंटों से ही है और इस संसार रूपी महल की ईंटें हम लोग हैं, शिखर भी हम और नींव भी हम। खुद को सुधारिये, सकारात्मक सोच रखिये फिर देखिये दुनिया बदलते देर नहीं लगेगी |


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