• प्रवचन और गुस्सा

    प्रवचन और गुस्सा: short inspirational hindi story

    • 2021-04-07 01:12:11
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    • Written by : Unknown
    दोस्तों काफी समय पहले की बात है एक बार एक महात्मा गाँव मे प्रवचन दे रहे थे अपने तीन चार शिष्यों के साथ में बैठे और धीरे-धीरे उनके प्रवचन में कई शिष्य एकत्रित होने लगे अब आप जानते हो कि सभी लोगों का स्वभाव अलग-अलग होता है महात्मा उपदेश दे रहे थे तो बीच में उपदेश देते वक्त एक ऐसी बात थी निकल के आई जो कि एक सत्य था और एक शिष्य को यह बात दिल में चुभ गई उस वक्त वह खड़ा होकर उन महात्माजी को गंदी-गंदी गालियां देने लग गया और वह बुरे बुरे वाक्य बोलने लगा यह  सुनकर बाकी के शिष्य काफी परेशान हुए और उन्होंने महात्मा जी से आज्ञा लेनी चाहिए कि आप बताइए कि इस मानव के इस दुर्व्यवहार से अगर आपको परेशानी हुई है तो हम इसको मजा चखाते हैं लेकिन महात्मा ने कहा कि आपको कुछ करने की जरूरत नहीं है जो होगा वह आप ही आप देख लेना दोस्तों हुआ कुछ कि 2 से 3 घंटे बाद भी उस आदमी का  गुस्सा चरम पर था और जैसे ही वह घर पहुंचा उसके मन में उस वक्त यह खयाल आ रहा था कि महात्मा जी अपने आप को समझते क्या है वह इस तरीके से कैसे कह सकते है तो धीरे-धीरे जब वक्त गुजरता गया उसका गुस्सा शांत होता गया तो  उसको बाद में यह अपनी गलती का अहसास हुआ और जब सुबह उठा तो  वह पूरी तरह से बदल चुका था और वह उनसे क्षमा याचना करने के लिए गया और जब वहां गया तो वहां महात्मा वहा नही थे  वो दूसरे गांव में चले गए लेकिन संदेश अच्छा देकर गए इस कहानी में हमें यह देखने को मिलता है कि अगर लोग आपसे कुछ कहते हैं और आप उनको रिप्लाई नहीं करते तो इसका मतलब यह है कि उनकी बात पर ध्यान  नहीं दिया आपके पास इतना फालतू समय नही की आप लोगो के बारे मे सोचे  वैसे तो इससे आपका ही  नुकसान  है सामने वाला अगर आपको भला-बुरा कह रहा है उसको क्या नुकसान है कोई चीज अगर आपको नहीं पसंद तो आप नहीं लेते और उस वक्त महात्मा जी ने अपने बाकी की शिष्यों से यही कहा कि कोई आपको गाली निकाल ले तो उसका क्या है इससे आप पर तो कोई फर्क नहीं पड़ता अगर फर्क पड़ता है इसका मतलब यह है कि सामने वाले ने जो आपसे इस तरीके का बर्ताव किया इससे आप पर फर्क नही पड़ना चाहिए | 

    Bonus Story- मैले कपड़े

    एक भिखारी किसी स्टेशन पर पेँसिलोँ से भरा कटोरा लेकर बैठा हुआ था। एक युवा व्यवसायी उधर से गुजरा और उसनेँ कटोरे मेँ 50 रूपये डाल दिया, लेकिन उसनेँ कोई पेँसिल नहीँ ली। उसके बाद वह ट्रेन मेँ बैठ गया। डिब्बे का दरवाजा बंद  होने ही वाला था कि अधिकारी एकाएक ट्रेन से उतर कर भिखारी के पास लौटा और कुछ पेँसिल उठा कर बोला, “मैँ कुछ पेँसिल लूँगा। इन पेँसिलोँ की कीमत है, आखिरकार तुम एक व्यापारी हो और मैँ भी।” उसके बाद वह युवा तेजी से ट्रेन मेँ चढ़ गया।
    कुछ वर्षों बाद, वह व्यवसायी एक पार्टी मेँ गया। वह भिखारी भी वहाँ मौजूद था। भिखारी नेँ उस व्यवसायी को देखते ही
    पहचान लिया, वह उसके पास जाकर बोला-” आप शायद मुझे नहीँ पहचान रहे है, लेकिन मैँ आपको पहचानता हूँ।”
    उसके बाद उसनेँ उसके साथ घटी उस घटना का जिक्र किया। व्यवसायी  नेँ कहा-” तुम्हारे याद दिलानेँ पर मुझे याद आ रहा है कि तुम भीख मांग रहे थे। लेकिन तुम यहाँ सूट और टाई मेँ क्या कर रहे हो?”
    भिखारी नेँ जवाब दिया, ” आपको शायद मालूम नहीँ है कि आपनेँ मेरे लिए उस दिन क्या किया। मुझे पर दया करने की बजाय मेरे साथ सम्मान के साथ पेश आये। आपनेँ कटोरे से पेँसिल उठाकर कहा, ‘इनकी कीमत है, आखिरकार तुम भी एक व्यापारी हो और मैँ भी।’
    आपके जानेँ के बाद मैँने बहूत सोचा, मैँ यहाँ क्या कर रहा हूँ? मैँ भीख क्योँ माँग रहा हूँ? मैनेँ अपनीँ जिँदगी को सँवारनेँ के लिये कुछ अच्छा काम करनेँ का फैसला लिया। मैनेँ अपना थैला उठाया और घूम-घूम कर पेंसिल बेचने लगा । फिर धीरे -धीरे मेरा व्यापार बढ़ता गया , मैं कॉपी – किताब एवं अन्य चीजें भी बेचने लगा और आज पूरे शहर में मैं इन चीजों का सबसे बड़ा थोक विक्रेता हूँ।
    मुझे मेरा सम्मान लौटानेँ के लिये मैँ आपका तहेदिल से धन्यवाद देता हूँ क्योँकि उस घटना नेँ आज मेरा जीवन ही बदल दिया ।”
    Friends, आप अपनेँ बारे मेँ क्या सोचते है? खुद के लिये आप क्या राय स्वयँ पर जाहिर करते हैँ? क्या आप अपनेँ आपको ठीक तरह से समझ पाते हैँ? इन सारी चीजोँ को ही हम indirect रूप से आत्मसम्मान कहते हैँ। दुसरे लोग हमारे बारे मेँ क्या सोचते हैँ ये बाते उतनी मायनेँ नहीँ रखती या कहेँ तो कुछ भी मायनेँ नहीँ रखती लेकिन आप अपनेँ बारे मेँ क्या राय जाहिर करते हैँ, क्या सोचते हैँ ये बात बहूत ही ज्यादा मायनेँ रखती है। लेकिन एक बात तय है कि हम अपनेँ बारे मेँ जो भी सोँचते हैँ, उसका एहसास जानेँ अनजानेँ मेँ दुसरोँ को भी करा ही देते हैँ और इसमेँ कोई भी शक नहीँ कि इसी कारण की वजह से दूसरे लोग भी हमारे साथ उसी ढंग से पेश आते हैँ।
    याद रखेँ कि आत्म-सम्मान की वजह से ही हमारे अंदर प्रेरणा पैदा होती है या कहेँ तो हम आत्मप्रेरित होते हैँ। इसलिए आवश्यक है कि हम अपनेँ बारे मेँ एक श्रेष्ठ राय बनाएं और आत्मसम्मान से पूर्ण जीवन जीएं।

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